ज्योतिष और मानव जीवन मार्ग मानव मस्तिष्क सतत् कार्यशील, जाग्रत और प्रगतिशील रहता है, वह नित्य नई नई भावनाओं और कल्पनाओं को जन्म देता रहता है तथा उसको मूर्त्त रुप देने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहता है | कर्म हम उसे कहते है जो कर्म वर्त्तमान क्षण तक किया गया है | चाहे वह इस जन्म में किया गया हो या पूर्व जन्मों में ये सभी कर्म संचित कहलाता है | जन्म जन्मान्तरों के संचित कर्मों को एक साथ भोगना संभव नहीं है | अतः उन्हें एक एक कर भोगना पड़ता है, क्योंकि इनसे मिलने वाले फल परस्पर विरोधी होते है | उन संचित कर्मों में से जितने कर्मों के फल का पहले भोगना प्रारम्भ होता है, उसे प्रारब्ध कहते है | ध्यान देने योग्य बात यह है कि जन्म जन्मान्तरों के संचित कर्मों को प्रारब्ध नहों कहते, अपितु उनसे जितने भाग का फल भोगना प्रारब्ध हुआ है, उसे ही प्रारब्ध कहते है | देश, काल, जाति के अनुसार सबों की अपनी संस्कृति होती है, जिसके अनुसार मानव अपना जीवन संचालित रखता है | सदियों से आयी हुई प्रत्येक देश, काल आदि की अपनी रीति- रिवाज, रहन- सहन, संस्कार, पूजा-पाठ आदि जिन नियमित तौर तरीकों से होते ह...
पराशर ज्योतिष - Parashara Jyotish
मैं सुनील नाथ झा, एक ज्योतिषी, अंकशास्त्री, हस्तरेखा विशेषज्ञ, वास्तुकार और व्याख्याता हूं। मैं 1998 से ज्योतिष, अंक ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तुकला की शिक्षा और अभ्यास कर रहा हूं | मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य | मैंने वास्तुकला और ज्योतिष नाम से संबंधित दो पुस्तकें लिखी हैं -जिनके नाम "वास्तुरहस्यम्" और " ज्योतिषतत्त्वविमर्श" हैं | मैंने दो पुस्तकों का संपादन किया है - "संस्कृत व्याकर-सारः" और "ललितासहस्रनाम" |