गण्ड-मूल गण्डान्त विचारन जन्म के लिए अशुभ समय कहा गया है गण्डान्त योग में जन्म के लिए अशुभ योग कहा गया है | वैसे जो भी योग जातक को प्राप्त होता भोगना ही पड़ता है | इस योग में जब संतान जन्म लेती है तो गण्डान्त शान्ति कराने के बाद ही पिता को देखना चाहिए | पराशर के अनुसार तिथि गण्ड में वृषभ का दान, नक्षत्र गण्ड में गोदान और लग्न गण्ड में स्वर्ण का दान करने से दोषत्व में कमी आ जाता है | गण्डान्त राशि चक्र का एक निश्चित्त बिंदु अंश है जहाँ सौर और चन्द्र मिलती है यह बिंदु मीन रेवती + मेष अश्वनी, कर्क + सिंह, वृश्चिक + धनु के बिंदु पर होता है | गण्डान्त का अर्थ संधि काल से होता हो | जन्म के ११ या १२ दिन नामकरण अथवा जन्म नक्षत्र के दिन अथवा शुभ दिन में नवग्रहों की शान्ति करनी ही चाहिए | अश्विनी, मघा तथा मूल की पहली ३ घड़ियों में दिन या रात में जन्म हो तो पिता, अपने शरीर तथा माता का नाश होता है | गण्डान्तं त्रिविधं प्रोक्तं तिथ्यङ्गर्थवशाद् बुधैः | पाणिग्रहादौ जनुषि प्रयाणे च विचिन्तयेत् || तिथि, लग्न तथा नक्षत्रा के वश त्रिविध गण्डान्त कहे गए है | यह शुभ कार्यों में वर्जित है | इनका व...
पराशर ज्योतिष - Parashara Jyotish
मैं सुनील नाथ झा, एक ज्योतिषी, अंकशास्त्री, हस्तरेखा विशेषज्ञ, वास्तुकार और व्याख्याता हूं। मैं 1998 से ज्योतिष, अंक ज्योतिष, हस्तरेखा विज्ञान, वास्तुकला की शिक्षा और अभ्यास कर रहा हूं | मैंने राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान तथा लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य | मैंने वास्तुकला और ज्योतिष नाम से संबंधित दो पुस्तकें लिखी हैं -जिनके नाम "वास्तुरहस्यम्" और " ज्योतिषतत्त्वविमर्श" हैं | मैंने दो पुस्तकों का संपादन किया है - "संस्कृत व्याकर-सारः" और "ललितासहस्रनाम" |